नेपाल में भ्रष्टाचार, नेपोटिज्म और सोशल मीडिया पर लगी पाबंदियों के खिलाफ चले विरोध प्रदर्शनों के बाद, देश की युवा पीढ़ी (Gen-Z) ने एक क्रांतिकारी कदम उठाया है। उन्होंने अमेरिकी गेमिंग एप discord पर ऑनलाइन वोटिंग के जरिए अपने देश का नया प्रधानमंत्री चुना है।
यह घटना दुनिया के लोकतांत्रिक इतिहास में एक मिसाल बन गई है, क्योंकि यह पहली बार है जब किसी लोकतांत्रिक राष्ट्र में इस तरह से किसी नेता का चुनाव किया गया हो।
नेपाल की इस घटना को युवा-नेतृत्व वाले डिजिटल लोकतंत्र की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। इस ऑनलाइन सभा (ऑनलाइन हडल) का आयोजन ‘हामी नेपाल’ नामक एक युवा संगठन ने किया था। यह संगठन पूरी तरह से Gen-Z युवाओं का समूह है, जिसमें 1,60,000 से अधिक सदस्य हैं, जो इस क्रांति को आगे बढ़ा रहे हैं।

Nepal witnessed a coup through a gaming app:
युवाओं के नेतृत्व वाली ‘हामी नेपाल’ संस्था ने ‘यूथ अगेंस्ट करप्शन’ चैनल शुरू करके एक उम्मीद की किरण जगाई, और देखते ही देखते 10 हजार से अधिक लोग एक साथ जुड़ गए। सिर्फ नेपाल ही नहीं, बल्कि विदेशों में रह रहे नेपाली युवा भी इस मुहिम का हिस्सा बनने के लिए दिल से इस बहस में शामिल हुए।
लोगों का उत्साह और जुनून इतना जबरदस्त था कि डिस्कॉर्ड एप का सर्वर लोड नहीं ले पाया और जगह कम पड़ गई। लेकिन इस मुश्किल ने उनका हौसला नहीं तोड़ा, बल्कि उन्होंने तुरंत यूट्यूब पर लाइव स्ट्रीमिंग शुरू कर दी। इस कदम से 6 हजार और लोग इस ऑनलाइन क्रांति से जुड़ पाए, जिससे यह साबित हुआ कि बदलाव की इच्छा रखने वालों को कोई भी तकनीकी बाधा रोक नहीं सकती।
There was a discussion on Discord due to its popularity among Gen-Z
सरकारी बैन से बचाव: जब नेपाल सरकार ने प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाकर युवाओं की आवाज को दबाने की कोशिश की, तो उन्हें लगा जैसे उनकी दुनिया सिमट गई हो। ऐसे मुश्किल समय में, उन्हें एक ऐसे सुरक्षित मंच की तलाश थी, जहाँ वे बेखौफ होकर अपनी बात रख सकें। तभी डिस्कॉर्ड एक उम्मीद बनकर सामने आया।
यह ऐसा डिजिटल ठिकाना बन गया, जहाँ सरकारी बैन का कोई डर नहीं था। युवाओं को लगा जैसे उन्हें अपनी आजादी वापस मिल गई हो, और उन्होंने इसी सुरक्षित जगह पर एकजुट होकर बदलाव की नींव रखी।
Gen-Z में लोकप्रियता:डिस्कॉर्ड जो गेमिंग और हंसी-मजाक की दुनिया में युवाओं के लिए एक जाना-पहचाना ठिकाना था, वही नेपाल के युवाओं के लिए क्रांति का सबसे मजबूत हथियार बन गया। वे पहले से ही इस मंच पर अपनी बातचीत और अपनी दुनिया को साझा करते थे।
रियल-टाइम कम्युनिकेशन:यही वजह है कि जब उन्हें अपनी आवाज उठाने की जरूरत पड़ी, तो उन्होंने किसी अनजान मंच को खोजने के बजाय, उसी भरोसेमंद डिस्कॉर्ड को चुना, जो पहले से ही उनके जीवन का हिस्सा था। उन्होंने अपने इस पसंदीदा मंच को एक नया और शक्तिशाली मकसद दे दिया।
यह एक ऐसा डिजिटल मंच बन गया था, जहाँ लोगों को लगा कि उनकी आवाज सच में सुनी जा रही है। वॉयस चैनल ने उन्हें रियल-टाइम में एक-दूसरे से बात करने का मौका दिया, जिससे बहस और चर्चाएं आसान हो गईं। वहीं, पोल फीचर से हर कोई अपनी राय दे सकता था, जिससे सभी को फैसले में शामिल होने का एहसास हुआ।
जहाँ इंस्टाग्राम या X जैसी एप्स पर उनकी आवाज लाखों पोस्टों के बीच कहीं खो जाती थी, वहीं डिस्कॉर्ड ने उन्हें एक घर दिया। यहाँ वे अपने शहर या अपने मुद्दे के हिसाब से एक दूसरे से जुड़ सकते थे, और एक संगठित तरीके से क्रांति की योजना बना सकते थे।
5 names finalized through voting on Discord
युवाओं ने अपने भविष्य के लिए जो सपना देखा था, उसे साकार करने के लिए डिस्कॉर्ड पर पूरी उम्मीद के साथ मतदान किया। उन्होंने जिन पांच लोगों को चुना, वे कोई अनजान चेहरे नहीं थे, बल्कि ऐसे नाम थे जिन पर वे भरोसा करते थे—जिनमें पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की, सामाजिक कार्यकर्ता हरका सम्पांग, महाबीर पुन, सागर ढकाल, और रास्त्र बिमोचन तिमल्सिना शामिल थे।
इस चुनाव में, जब काठमांडू के मेयर और रैपर बालेन शाह जैसे लोकप्रिय व्यक्ति शामिल नहीं हो सके, तब भी उनकी आवाज़ ने इस क्रांति को और भी मजबूत बना दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पर सुशीला कार्की का समर्थन करके यह दिखा दिया कि यह लड़ाई किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक बेहतर भविष्य की सामूहिक लड़ाई है।

There was a discussion on Discord due to its popularity among Gen-Z
25 साल की लॉ ग्रेजुएट रेजिना बेसनेट, जो उस समय डिस्कॉर्ड बहस में शामिल हुई थीं, ने कहा, ‘लोग आगे बढ़ते हुए सीख रहे थे। हममें से कई लोग नहीं जानते थे कि संसद भंग करने या अंतरिम सरकार बनाने का क्या मतलब होता है। लेकिन हम सवाल पूछ रहे थे, विशेषज्ञों से जवाब ले रहे थे और मिलकर इसका हल निकालने की कोशिश कर रहे थे।’
पत्रकार प्रणय राणा ने देखा कि डिस्कॉर्ड ने युवाओं को एक ऐसा मंच दिया, जहाँ वे पहली बार खुलकर अपनी बात कह सकते थे। लेकिन इस डिजिटल क्रांति की अपनी चुनौतियाँ भी थीं; फर्जी अकाउंट और गलत जानकारियाँ इस भरोसे को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे।
मगर युवाओं ने हार नहीं मानी। उन्होंने तुरंत एक ‘फैक्ट चेक’ सब-रूम बनाया, जहाँ वे एक-दूसरे की मदद से अफवाहों को रोक रहे थे, ताकि उनकी मुहिम की सच्चाई बनी रहे। कुछ लोगों ने राजशाही की वापसी का नारा भी लगाया, लेकिन उनकी आवाज बहुत कमजोर थी क्योंकि ज्यादातर युवा एक ऐसे नए नेपाल का सपना देख रहे थे, जहाँ सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि हर नागरिक का सम्मान हो।

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